बाइट, प्लीज (उपन्यास, भाग- 2)

(जस्टिस काटजू को समर्पित, जो पत्रकारिता में व्याप्त अव्यवस्था पर लगातार चीख रहे हैं….)

4.

नीलेश पंद्रह दिन तक खबर न्यूज से बुलावा आने का इंतजार करता रहा। किस्मत अच्छी थी कि अलीनगर के एक मुस्लिम मित्र इमरान के बड़े से मकान में उसके रहने की व्यवस्था हो गई थी। इमरान का पूरा परिवार वर्षों से दुबई में रह रहा था और वह खुद दिल्ली में रहकर जेएनयू से एमफिल कर रहा था। पटना में उसका मकान खाली पड़ा था। मकान की देखभाल होता रहे इस लिहाज से अपने गांव के ही एक बंदे मोहम्मद करीम को उसने मकान में रहने की इजाजत दे दी थी जो पटना के एक स्कूल में उर्दू का शिक्षक था। नीलेश ने करीम से उर्दू सीखाने को कहा और वह फौरन तैयार हो गया। उर्दू की पढ़ाई के साथ-साथ मीडिया में अपने लिए बेहतर जगह पाने की नीलेश की कवायद जारी रही।

इस दौरान पटना में रहने वाले अपने पुराने दोस्तों की तलाश भी जारी कर दी थी, खासकर उन दोस्तों को बड़ी सरगर्मी से तलाश कर रहा था, जो मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय थे। इसी क्रम में उसकी मुलाकात सुकेश विद्वान से हुई। सुकेश विद्वान लंबे समय तक दिल्ली के एक मीडिया हाउस में काम कर चुका था। पटना और दिल्ली से निकलने वाले एक सांध्य अखबार के अलावा एक प्रोडक्शन हाउस में भी महत्वपूर्ण भूमिका में रह चुका था। जिस कंपनी में वह काम करता था वह कंपनी मुख्य रुप से फाइनेंस के क्षेत्र सक्रिय थी, जिसमें बिहार के ही एक बड़े मंत्री के पैसे लगे हुये थे। अचानक कंपनी के ऊपर पब्लिक धन के साथ गड़बड़ी करने का आरोप लगा और एक के बाद एक कंपनी के सभी डायरेक्टर सलाखों के पीछे पहुंच गये या फिर फरार हो गये। इसके साथ ही लंबे समय तक सुकेश विद्वान की किस्मत पर भी ताला लग गया। फिलहाल वह पटना में ही एक मासिक पत्रिका में काम करते हुये पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने आप को सक्रिय रखे हुये था।

पटना के मीडिया क्षेत्र में घटने वाली हर छोटी-बड़ी घटनाओं की उसे खबर रहती थी, लेकिन अपने लंबे ट्रैक रिकार्ड की वजह से वह किसी बड़े मीडिया हाउस में अच्छा ओहदा हासिल करने में अक्षम था। मीडिया के क्षेत्र में वरिष्ठता हासिल कर लेने के बाद एक सीमा पर आकर संभावनाएं सीमित हो जाती हैं। सुकेश मीडिया के इसी मैकेनिज्म का शिकार हो रहा था।

फोन पर नीलेश की बात सुकेश से हुई और उसने सुकेश को अलीनगर में आने के लिए राजी कर लिया।

नीलेश अलीनगर में इमरान के घर में बैठकर पेंसिल की मदद से उर्दू अल्फावेट का अभ्यास करते हुये सुकेश का इंतजार कर रहा था और करीम नीलेश के लैपटाप पर उर्दू टाइप करना सीख रहा था।

आप पहले यहां आ जाते तो अब तक मैं कंप्यूटर पर काम करना सीख जाता,, फौंट पर उंगलियां सेट करते हुये करीम ने कहा।

इंशाअल्लाह एक सप्ताह में आप बेहतर तरीके से टाइप करने लगेंगे। सीखने की कोई उम्र नहीं होती है। मैं तीनम दशक देख चुका हूं फिर भी आपसे उर्दू सीख रहा हूं, नीलेश ने अभ्यास जारी रखते हुये कहा।

बहुत कठिन है जनाब, बचपन में सीखने की ललक ज्यादा होती है और क्षमता भी। हालांकि आप ठीक कह रहे हैं इल्म सीखने की कोई उम्र नहीं होती।

करीम मियां, बिहार में तो मुस्लिम और यादवों का अच्छा खासा गठजोड़ था। फिर अचानक लालू धराशायी क्यों हो गये?”, करीम की राजनीतिक समझ को टटोलने की कोशिश करते हुये नीलेश ने पूछा।

सीधी सी बात है जनाब किसी भी जिंदा कौम को आप ज्यादा दिनों तक मुर्ख नहीं बना सकते हैं। मुस्लिम कौम लालू के पीछे झंडा लेकर लंबे समय तक चलता रहा, लेकिन जो हालात पैदा हो गई थी उससे सूबे के मुसलमान संतुष्ट नहीं थे। लालू को मुसलमानों का समर्थन सिर्फ भाजपा के डर से मिल रहा था और लालू भी बार-बार मुसलमानों को यही अहसास दिलाते थे कि यदि वह नहीं रहेंगे तो भाजपा और आरएसएस मुसलमानों का जीना मुहाल कर देगी। आखिर भय दिखाकर आप किसी भी समुदाय को कितना देर तक गोलबंद रख सकेंगे। मुसलमानों का विश्वास धीरे-धीरे नीतीश कुमार पर बनता गया। मैं यह नहीं कहता हूं कि सारे मुसलमान नीतीश कुमार के पक्ष में हैं, मुसलमान आज भी लालू की तरफ हैं, लेकिन पढ़े लिखे मुसलमानों का एक बहुत बड़ा तबका लालू से दूर हो चुका है। मेहनतकश मुसलमान अभी भी लालू के साथ हैं। आज भी लालू पर उनका यकीन बरकरार है। अब तो चुनाव भी होना वाला है। नीतीश कुमार के पांच साल करीब करीब पूरे-पूरे हो चुके हैं। मुसलमानों के लिए यह पांच साल शांतिपूर्ण रहा, करीम ने सलीके से अपनी बात रखी।

तो आप सुशासन से पूरी तरह से संतुष्ट हैं?”

जनाब, इतना तो कहा ही जा सकता है कि लूट, चोरी-डकैती और अपहरण पर लगाम लगा है। लोग अमन की नींद सो रहे हैं। पहले रात में पटना स्टेशन पर उतरते ही यह सोचना पड़ता था कि अलीनगर तक महफूज पहुंच पाऊंगा या नहीं। अधिक रात होने पर तो स्टेशन पर सोने के लिए मजबूर होना पड़ता था। जान और माल की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं थी। यह पटना शहर की स्थिति थी, सूबे के दूसरे शहरों के बारे में आप सहजता से अनुमान लगा सकते हैं। अब आप बेफिक्र होकर अपने घर से निकल सकते हैं। सुशासन में सलामत घर लौटने की गारंटी तो है। हालांकि इतना ही काफी नहीं है। ओह वाकई में कंप्यूटर पर टाइपिंग करना मुश्किल काम है।

तभी नीलेश का मोबइल बज उठा। सुकेश का फोन आ रहा था। मोबाइल उठाकर नीलेश ने बटन दिया।

हैलो, कहां पहुंचे आप

मैं अली नगर में दाखिल हो चुका हूं और मुझे लगता है मैं उस मकान के सामने खड़ा हूं जिसका एड्रेस तुमने मुझे दिया था, दूसरी तरफ से सुकेश की आवाज सुनाई दी।

मैं घर पर ही हूं, अभी बाहर निकलता हूं, इतना कह कर नीलेश बरामदे में आया।

सामने सड़क पर सुकेश अपनी बदरंग स्कूटर पर बैठा हुआ था। स्कूटर के आगे बड़े-बड़े लाल अक्षरों में प्रेस लिखा हुआ था। नीलेश पर नजर पड़ते ही सुकेश अपनी स्कूटर से उतरा और उसे घसीटते हुये मेन गेट के अंदर ले आया।

तुमसे मिलने की बड़ी इच्छा हो रही थी, कुछ खास बदलाव नहीं हुआ तुममे, वैसे ही हो दुबले के दुबले। हां बालों में कुछ सफेदी जरूर आ गई है। लगता है हम 12 साल बाद मिल रहे हैं। आखिरी मुलाकत दिल्ली में हुई थी। आओ अंदर चले, बहुत सारी बातें करनी है , सुकेश का स्वागत करते हुये नीलेश ने कहा। मंडी हाउस की बैठकी आज भी दिमाग में तरोताजा है।

स्कूटर को स्टैंड पर लगाने के बाद सुकेश ने अपने मुंह में उंगलियां डालकर नीचले होठ में दबी हुई खैनी को निकालकर बाहर फेंकते हुये कहा, पटना कब आये?

करीब पंद्रह दिन हो गये। अब यहीं रह कर काम करने के इरादे से आया हूं। तुम बताओ क्या चल रहा है यहां। तुम तो यहां काफी दिन से हो।

दोनों बाते करते हुये घर के अंदर दाखिल हुये।

दिल्ली छोड़ने के बाद मैं पूरी तरह से यहीं पर सेट कर गया हूं और अब बाहर जाने की इच्छा भी नहीं है। जो करना है यहीं करूंगा। लेकिन तुम्हारा दिल्ली छोड़कर यहां आने का तुक मेरी समझ में नहीं आया , कमरे में एक खाली कुर्सी पर बैठते हुये सुकेश ने कहा।

तुम्हें याद है जब मैं पहली बार पटना छोड़कर दिल्ली जा रहा थो तो तुमने कहा था कि अच्छे लोग बिहार से बाहर निकल रहे हैं। अब तो मैं काफी स्किलफुल हो गया हूं, समझ भी बढ़ गई है। मैंने सोचा कि ऐसे में वापस बिहार लौटकर काम करना ही बेहतर है। यहां पर नये लोगों के साथ काम करते हुये सीखने और सीखाने का मौका मिलेगा। वैसे भी जहां तक मैं समझता हूं बिहार अभी कई मायने में एक्सपेरिमेंटल स्टेज में है , नीलेश ने कहा और करीम की तरफ देखने लगा, जो लैपटाप पर अपनी उंगलियों को रुक रुक कर चलाने की कोशिश कर रहा था। करीम की तरफ इशारा करते हुये उसने सुकेश से कहा, जब से मैं यहां आया हूं करीम को लैपटाप पर उर्दू टाइप करना सीखा रहा हूं और इनसे उर्दू सीख रहा हूं। सीखने की यही रफ्तार रही तो इन्शाअल्लाह अगले 25-30 दिन में तरीके से उर्दू लिखने और पढ़ने लगूंगा। चाय पीओगे, बनाऊं?”

यदि कोई परेशानी न हो तो बना सकते हो, तुम तो जानते ही हो कि चाय से मुझे कभी इन्कार नहीं रहा, सुकेश के चेहरे पर थकावट स्पष्ट रूप से झलक रही थी। नीलेश किचन की तरफ बढ़ने की वाला था कि करीम ने कहा, “’आप दोनों बातें किजीये, मैं चाय बना के लाता हूं, वैसे भी कमबख्त इस लैपटाप पर टाइप करते-करते जी उब गया है। करीम किचन की तरफ चला गया।

तो अब यहां तुम्हारी क्या करने की योजना है?”, अपने दुबले-पतले शरीर को कुर्सी पर पूरी तरह से ढीला छोड़ता हुये सुकेश ने पूछा।

कुछ दिन पहले खबर न्यूज में अपना बायोडाटा देकर आया हूं। अब उनके जबाव का इंतजार कर रहा हूं। तुम्हें तो पता ही होगा इस खबर न्यूज के बारे में?

वही ना जिसका आफिस बांस घाट के पास है?

हां

उस दफ्तर में मैं जा चुका हूं। मेरा एक दोस्त है मनीष, वह भी इससे जुड़ा हुआ है। इसका मालिक मुज्जफरपुर का है, रत्नेश्वर सिंह। आर्युवैदिक कालेज है, जमीन और लकड़ी का भी व्यापाक कारोबार है। हाजीपुर में भी अच्छी खासी जमीन है। इनका समझौता मैन टीवी से हो रहा है। अभी फाइनल नहीं हुआ है लेकिन बातचीत चल रही है। लोगों की जरूरत तो इन्हें पड़ेगी ही। कुछ दिन पहले नरेंद्र श्रीवास्तव से माहुल वीर की बात हुई थी...तुम्हें माहुल वीर याद है?”

वही ना जो मंडी हाउस में हमलोगों के साथ बैठा करता था,

अपने दिमाग पर जोर देते हुये नीलेश ने कहा।

हां, झारखंड हेड के लिए उसकी बात हो चुकी है। माहुल को नरेंद्र श्रीवास्तव का नंबर मैंने ही दिया था। दोनों पहले एक साथ काम कर चुके थे, किसी अखबार में। नरेंद्र श्रीवास्तव ने उसे झारखंड की जिम्मेदारी सौंप दी है। इस चैनल में मैं भी इंट्री चाह रहा हूं। लंबे समय तक मीडिया की मुख्य धारा से बाहर रहा हूं। यदि प्लेटफार्म मिल जाता है तो मेरे लिए बेहतर होगा, आगे का रास्ता खुल जाएगा। माहुल एक दो दिन में पटना आने वाला है, तुम्हारे बारे में उससे बात करूंगा। तुम्हें वह अच्छी तरह से जानता भी है। उम्मीद है बात बन जाएगी।

दैट्स गुड, पटना में और कोई मीडिया हाउस है जहां मन मुताबिक काम किया जा सके?”

फिलहाल तो मेरी नजर में कोई नहीं है. असल चीज है संपर्क, यदि संपर्क है तो कहीं भी काम मिल सकता है। मेरे कई दोस्त पटना में मीडिया हाउसों में ऊंचे ओहदों पर है, लेकिन उनसे मुलाकात नहीं होती है। मैं ही नहीं जाता हूं। वैसे भी जाकर काम मांगने की फितरत मेरी है नहीं और घर से बुलाकर कोई काम देने से रहा। एक गैप सा हो गया है।

बातों का सिलसिला चल ही रहा था कि करीम चाय लेकर आ गया। तीनों एक साथ बैठकर चाय की चुस्कियां लेने लगे।

मुझे लगता है कि तुम्हारा बिहार में काम करने का डिसिजन गलत है। कुछ हासिल नहीं कर पाओगे यहां। एक समय के बाद फ्रस्टेशन होने लगेगा , सुकेश ने कहा।

वो तो काम करने के बाद ही पता चलेगा। वैसे मेरा इरादा पक्का है कि यहीं काम करूंगा। आखिर बिहार के प्रति अपनी भी कुछ जिम्मेदारी बनती है। अब बदलते बिहार में अपनी भी तो कुछ भूमिका होनी चाहिये।, नीलेश ने थोड़े उत्साह से कहा।

अब बिहार कितना बदल रहा है यह तो पता नहीं, लेकिन कहीं ऐसा न हो कि यहां काम करते-करते तुम खुद बदल जाओ। लगता है सरकारी विज्ञापनों का प्रभाव तुम पर कुछ ज्यादा ही है। यहां के बड़े-बड़े अखबार और चैनल सरकारी धुन पर नाच रहे हैं। सारे पत्रकार अर्दली की भूमिका में है, पत्रकारों को छोड़ दो, अखबारों और चैनलों के मालिकान ही सरकार से सटे हुये हैं। इनमें सरकार के पक्ष में हवा बनाने की होड़ लगी हुई है। ऐसे में यदि कोई पत्रकार सरकार के खिलाफ खबर बटोरने की कोशिश भी करेगा तो उसकी खबर छपेगी कहां? अब तो इलेक्शन सिर पर है। शायद पत्रकारों को निष्पक्ष होकर रिपोर्टिंग करने का मौका मिले, लेकिन इसकी संभावना कम ही दिखती है। और इस खबर न्यूज का मकसद भी चुनाव में रुपया पीटने का ही है। अब समझ लो तुम किस भूमिका में होगे, सुकेश ने अंतिम वाक्य पर कुछ जोर देते हुये कहा।

मैं बस इतना जानता हूं कि मुझे यहां काम करना है। चूंकि चुनाव भी होने वाला है, इसी बहाने बिहार के मिजाज को भी समझने का मौका मिलेगा।

अच्छी बात है, मैं तुम्हारी पूरी मदद करूंगा। मुझे कहीं जाना है। जल्द ही मुलाकात होगी, माहुल को आने दो जो भी प्रोग्रेस होगा, मैं तुम्हें बताऊंगा।

सुकेश और नीलेश साथ-साथ कमरे से बाहर निकले। दस-बारह किक मारने के बाद सुकेश का स्कूटर स्टार्ट हुआ। अपना टूटा हुआ हेलमेट उसने अपने सिर पर रखा और स्कूटर बढ़ा दिया। बेसुरी आवाज के साथ स्कूटर के पीछे से काला धुआं निकल रहा था। नीलेश आंखों के सामने से स्कूटर के ओझल हो जाने तक काले धुयें की टूटती हुई लकीरों को देखता रहा।

5.

सुबह के सात बज रहे थे। नीलेश बेड पर लेटा हुआ टीवी देख रहा था और करीम स्कूल निकलने की तैयारी कर रहा था। बिहार के तमाम न्यूज चैनलों पर उसकी गहरी नजर थी। जब से वह यहां आया था बिहार के न्यूज चैनलों को गहराई से वाच कर रहा था। उस वक्त एक चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी, मोटरसाइकिल में सांप घुसा। साथ में विजुअल्स चल रहा था। एक छोटा सा सांप मोटरसाइकिल के चक्के में लिपटा हुआ था और एक आदमी एक डंडे के सहारे सांप को वहां से निकालने की कोशिश कर रहा था। करीब पंद्रह मिनट तक इसी खबर के सहारे उस चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज चलता रहा।

नीलेश के जेहन में ब्रेकिंग न्यूज पर प्रकाशित कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के एक सर्वे की याद ताजा हो गई। उस सर्वे में दुनियाभर के तमाम न्यूज चैलनों पर प्रसारित ब्रेकिंग न्यूज के कंटेंट को टटोला गया था और यह दर्शाया गया था कि ब्रेकिंग न्यूज में गैरजरूरी खबरों ने अहम स्थान बना लिया है जिनका जनहित से दूर-दूर तक वास्ता नहीं होता है। भारत के न्यूज चैनलों को सर्वे के दायरे में नहीं लिया गया था। उस सर्वे को पढ़ने के बाद नीलेश भारत के न्यूज चैनलों पर प्रसारित ब्रेकिंग न्यूज पर खासा ध्यान देता था और यह समझने की कोशिश करता था कि इस खबर में क्या खास है कि इसे ब्रेकिंग न्यूज के तौर पर पेश किया जा रहा है। इस वक्त ब्रेकिंग खबर के रूप में सांप वाली खबर को देखकर उसे अजीब लग रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इस खबर में ब्रेकिंग न्यूज वाली कौन सी बात है। कुछ दिन पहले दिल्ली के एक राष्ट्रीय चैनल के दफ्तर में एक बिल्ली के छज्जे पर चढ़ने की खबर को ब्रेकिंग न्यूज के रूप में प्रस्तुत किया था। हद तो तब हो गई थी जब बिल्ली के छज्जे से कूदने की खबर को भी ब्रेकिंग न्यूज में प्रमुखता से दिखाया गया था।

इस खबर पर चुटकी लेते हुये रोहित ने कहा था, यार अब बिल्ली छज्जे पर नहीं चढ़ेगी तो क्या किसी लड़की के गोद में चढ़ेगी। बिल्ली का काम ही छज्जे पर चढ़ना, इसमें ब्रेकिंग न्यूज वाली कौन सी बात है। मीडिया को हांकने वाले लोगों का लगता है दिमाग ही सटक गया है। यह जर्नलिज्म के पहले अध्याय में ही पढ़ाया जाता है कि जब कुत्ता आदमी को काटता है तो खबर नहीं है, लेकिन जब आदमी कुत्ता को काटता है तो यह खबर है। अब बिल्ली के बजाया भैंसा या गेंडा छज्जे पर चढ़ जाये तो यह खबर हो सकती है, लेकिन बिल्ली का छज्जे पर चढ़ना तो स्वाभाविक बात है। इसमें खबर कहां है। साले तुम पत्रकार लोग दर्शकों को चुतिया समझते हो। रोहित की बात से असहमत होने का सवाल ही नहीं था, लेकिन जिस बेबाकी से रोहित मीडिया को गाली बक रहा था उसका विरोध करना भी जरूरी था।

अब लोग चौबीसों घंटा तो खबर देख नहीं सकते, इसलिये मनोरंजन के लिहाज से इस तरह की खबरें परोसी जाती हैं। अब इंफोटेनमेंट का जमाना है। खबरों के साथ-साथ लोगों को मनोरंजन भी चाहिये, नीलेश ने विरोध किया था।

यार तुम्हें पता है रूस के एक चैनल ने अपने दर्शकों की संख्या में इजाफा करने के लिए एक नया प्रयोग किया था। उत्तेजक एंकर फुल ड्रेस में स्क्रीन पर बैठती थी और खबरों को पढ़ने के दौरान एक-एक करके अपने कपड़े उतारती जाती थी। चैनल का तर्क था कि खबरों की नंगी सच्चाई को दिखाने के लिए लड़की नंगी होती जाती है। इस चैनल के दर्शकों की संख्या में रातों रात चौगुना वृद्धि हो गई थी। खबरों की बजाय दर्शकों की रुचि एंकर के भरे हुये बदन में होती थी। चैनल का तर्क था कि हाट खबरों को प्रस्तुत करने का तरीका भी हाट होना चाहिये। यार, भारतीय मीडिया वाले इस तरह के प्रयोग कब करेंगे?

अपनी बकवास बंद करो।

क्यों, बकवास करने का अधिकार तो सिर्फ तुम पत्रकारों के पास ही है। पत्रकारिता के कुछ अध्याय मैंने भी पढ़े हैं। तुमलोगों की आजादी और एक आम आदमी की आजादी में कानूनन कोई फर्क नहीं है। भारतीय संविधान की धारा 19 एक का इस्तेमाल तुम भी करते हो और हम भी करते हैं। मैं सिर्फ इतना कहता हूं कि बेहतर खबर नहीं दिखा सकते तो कम से कम कूड़ा करकट भी तो मत दिखाओ। जिस तरह की खबरें परोसी जाती हैं उसे देखकर कोई भी समझदार आदमी आत्महत्या कर ले।

तो तुम अब तक क्यों जिंदा हो?

क्योंकि मैं समझदार नहीं हूं।

यह जानकर कि रोहित उस दिन पूरी तरह से भिड़ने के मूड में था नीलेश ने चुपी मार ली थी। लेकिन आज सांप वाली खबर को देखकर एक बार फिर नीलेश को रोहित की बातों में सच्चाई का अहसास हो रहा था।

रोहित का चौड़ा चेहरा उसकी आंखों के सामने घूम रहा था। यूपीएससी की कठिन तैयारी के बावजूद रोहित को असफलता हाथ लगी थी। इसके लिए वह पूरी तरह से आरक्षण को जिम्मेदार मानता था। भारत में आरक्षण लागू होने के बाद उसे दो मौके और मिले थे। पीटी और रिटेन में क्वालीफाई करने के बाद उसे इंटरव्यू तक में बैठने का मौका मिला था, लेकिन सलेक्शन लिस्ट में उसका नाम नहीं आ सका। कुछ दिन तक हताश रहने के बाद उसने मीडिया में काम करने का निश्चय किया था। बहुत जल्द ही उसे एक मीडिया हाउस में काम करने का मौका भी मिल गया था, लेकिन उसकी भाषा को लेकर तमाम बड़े अधिकारी हो हल्ला मचाते थे। वह इलेक्ट्रानिक मीडिया में भी बेहतरीन हिन्दी का पक्षधर था। उसकी कोशिश होती थी कि खबरों को प्रेषित करने के लिए हिन्दी के अच्छे शब्दों का इस्तेमाल किया जाये जबकि बड़े ओहदों पर बैठे लोग हमेशा चलताऊ शब्दों का ही इस्तेमाल करने पर जोर देते थे। बहस करने पर उनका तर्क होता था, यार हम खबर परोस रहे हैं, साहित्य नहीं। टीवी देखने वाले डिक्शनरी लेकर नहीं बैठते हैं।

उनके जवाब में रोहित कहता था, “ जब तक हम बेहतरीन भाषा पेश नहीं करेंगे तब तक लोगों को इसका स्वाद कैसे लगेगा।

उस मीडिया हाउस के लोगों ने रोहित को पूरी तरह से खारिज कर दिया था और बाद में रोहित ने भी तमाम मीडिया हाउसों को खारिज कर दिया था। उसकी नजर में मीडिया हाउस फूहड़ता की हदों को पार कर चुके थे। संप्रेशन का नया माध्यम तलाशते हुये वह फिल्म की ओर मुखातिब हो गया था। दिल्ली में अपना निवास बनाये रखते हुये वह पिछले कुछ सालों से लगातार मुंबई का चक्कर का लगा रहा था।

तभी नीलेश के मोबाइल फोन का कालर ट्यून बज उठा, सुकेश का फोन था। उसने लपककर अपना मोबाइल उठाया और स्वीच दबा कर बोला, हैलो.

माहुल वीर पटना आ गया है, एक बार मिल लो उससे। तुम्हारे बारे में बात हो गई है।

क्या बोल रहा था ?”

पैसे को लेकर डाउट कर रहा था, कह रहा था तुम दिल्ली में काम कर चुके हो। वहां ज्यादा पैसे मिलते होंगे, उतना पैसा यहां नहीं मिलेगा, यह बिहार है। पैसों को लेकर तुम्हें समझौता करना पड़ सकता है।

मीडिया के क्षेत्र में मेरी अंतिम नौकरी 40 हजार की है। कहोगे तो सैलरी स्लिप भी दिखा दूंगा। सब मेरे पास पड़े हुये हैं, नीलेश ने कहा।

वही तो नहीं दिखाना है। 40 हजार की सैलरी स्लिप दिखाओगे तो यहां नौकरी मिलनी मुश्किल हो जाएगी। 8-10 हजार में अच्छे-अच्छे लोग यहां काम करने को तैयार हैं। ऐसे में कोई भी आर्गेनाजेशन ज्यादा लोड नहीं लेगा।

लेकिन क्वालिटी भी तो कोई चीज होती है।

क्वालिटी को मारो गोली, वो यहां कोई नहीं देखता है। बस मीडिया के जरूरी काम आने चाहिये। वैसे एक बार उससे मिल लो। एयरपोर्ट के सामने वाले गेस्ट हाउस में वह ठहरा है। मैं अभी यहीं बैठा हुआ हूं। आ सकते हो?”

आधे घंटे में मैं पहुंच रहा हूं।

फोन काटने के बाद नीलेश जल्दी से गेस्ट हाउस पहुंचने की तैयारी करने लगा।

(जारी..........अगला अंक अगले शनिवार को)

Comments

Popular posts from this blog

रामेश्वरम में

इति सिद्धम

Bhairo Baba :Azamgarh ke

Most Read Posts

रामेश्वरम में

Bhairo Baba :Azamgarh ke

इति सिद्धम

Maihar Yatra

Azamgarh : History, Culture and People

पेड न्यूज क्या है?

...ये भी कोई तरीका है!

विदेशी विद्वानों के संस्कृत प्रेम की गहन पड़ताल

सीन बाई सीन देखिये फिल्म राब्स ..बिना पर्दे का

आइए, हम हिंदीजन तमिल सीखें